कभी कभी तुम पर
क्रोध आता है
तो कभी दिल दर्द से
डूबा जाता है
"जाने कैसे होगे तुम"
ये सोच कभी चिंता करती हूँ
तो कभी अपनी असमर्थता पे
चिढ़ती हूँ, कुढ़ती हूँ
घटना, सिर्फ एक-----
तुम्हारा मुझे छोड़ ,
दूर चले जाना
और उस एक घटना के लिए
मेरी अनेक प्रतिक्रियाएं
सच ही तो है
'दिल चंचल होता है'
वक़्त के साथ 'गर
मेरे ही दिल का मौसम बदल गया
तो मौसम के साथ यदि
मेरे प्रति तुम्हारी भावनाएँ भी
बदल गयीं,
तो इसमें
तुम्हारा क्या दोष?
आखिर इंसान का दिल है
बदलाव तो मांगेगा ही...........
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