Sunday, January 11, 2009

मुकम्मल कविता


दर्द का संपूर्ण कोश उडेल डाला
शब्दों का ढेर भी लगा दिया
दिल का कटोरा खुरच-खुरच कर
धड़कन को ही पन्नों पे सजा दिया

चलो,
अब इन्हें समेट लूं,
और दे आऊं
ठण्ड से कांपते
किसी बेघर बूढे को

बेचारा
इन्हें जलाकर
थोडा जीवन ईधन ही पा जाए
तो,
मेरी कविता
मुकम्मल हो जाए

दिल का भार तो अब भी
धरा का धरा रख्खा है….!!