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तुमको जब भी सोचा है
चुटकी में दिन बीता है
आ उलझा जो पेड़ों से
ठोकर खाया झोंका है
सहराओं में जाते ही
रस्ता रस्ता भूला है
जो तुझमें कोई ऐब नहीं,
फिर क्यूँ छिपता फिरता है?
दरिया में सूरज पिघला
क्या वो बर्फ का गोला है?
दुनिया,दिल दोनों हों खुश
ख़ाब ये कितना महंगा है!
सूरज तेरे जलने से
शब का काजल बनता है
इतनी ठंढ औ इक बूढ़ा
कुहरा ओढ़े बैठा है
आँखें भी हैं नूर भी है
शह्र ये फिर भी अंधा है
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- वर्तिका
तुमको जब भी सोचा है
चुटकी में दिन बीता है
आ उलझा जो पेड़ों से
ठोकर खाया झोंका है
सहराओं में जाते ही
रस्ता रस्ता भूला है
जो तुझमें कोई ऐब नहीं,
फिर क्यूँ छिपता फिरता है?
दरिया में सूरज पिघला
क्या वो बर्फ का गोला है?
दुनिया,दिल दोनों हों खुश
ख़ाब ये कितना महंगा है!
सूरज तेरे जलने से
शब का काजल बनता है
इतनी ठंढ औ इक बूढ़ा
कुहरा ओढ़े बैठा है
आँखें भी हैं नूर भी है
शह्र ये फिर भी अंधा है
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- वर्तिका