Friday, July 24, 2009

साझा कारोबार : एक क्षणिका


ख़याल तुम रोंप जाते हो
मैं पकी नज्में काट,
बाज़ार में रख आती हूँ

साझा कारोबार है अपना......
बटवारा जो कर लो कभी,
ठप पड़ जाए !!! जाए !!!

Saturday, July 11, 2009

खँडहर

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मेरा अंतस अब खँडहर ही हो चला...

गाहे-बेगाहे जो टकरा जाओ कहीं
मैं घन्टों सुनती रहती हूँ तुम्हें |
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Friday, July 03, 2009

सरहद

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सरहदों में बँटे ही रहने दो जहां को
खुदा कहाँ तक हर इल्जाम को कन्धा देगा

खबर आयी है लोग अपने ही बागी हुए हैं
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