Tuesday, November 30, 2010

एक पुराना सवाल ... एक पुराना ख़याल...

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कैसे खड़ी हो जाती हैं
वहाँ दीवारें
मजहबों की
जहाँ दबी होती हैं
आहें, आंसू, सिसकियाँ  

कमज़ोर नहीं पड़ती
सीली ज़मीं पे रखी नीवें....?
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