Sunday, July 18, 2010

रिश्वतखोर खला की परतें ...

जानती हूँ
कुसूर तेरा नहीं खुदाया
जो दुआओं में मेरी
असर ना हुआ

ये खला की सात परतें
जो दरम्यान खड़ी है ना,
...रिश्वतखोर बहुत हैं !

खा जाती होंगी
तुझ तक पहुँचने से पहले ही 
थोड़े अलफ़ाज़, थोड़ी शिकायतें,
और ढेर सारी मिन्नतें
जो रोज़ भेजती हूँ तुझे
धूप, अर्घ्य और नवैध के साथ...

ठीक वैसे ही
जैसे कुतर जाती हैं किनारे
हर रोज़ आसमान में टंगे
उस गोल चाँद के
जब वह
सब सय्यारों को टापता हुआ
मेरी खिड़की से कूद
मेरी कोठरी के फर्श पर उतरता है....

बेचारा ! चौकोर ही बचा होता है तब....|

रिश्वतखोर बहुत हैं ये खला की सात परतें ...!