Monday, August 24, 2009

खुदाई

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मैंने तो
बस देना चाहा था,
उसे….......
प्रेम का अर्घ्य .........
बचपन का स्वर्ग.........
सपनों का घर .........
अंतस का स्वर.........
मिटटी का जुडाव.........
सानिध्य का आलाव
मुक्तक के छंद.........
रिश्तों के ... बंधन स्वच्छंद .........

और तुम…
तुम मुझे
यह सब दे सकने का
एक मौका भी न दे सके ….!

पर हाँ,
देते भी क्यूँ….?
खुदा जो ठहरे…!
किसे 'कब', 'कहाँ', 'किसके हाथों', और
'क्या' देना है …
यह तय करने का
तुम्हारा एकाधिकार
जो यदि बंट गया,
तो तुम्हारी 'खुदाई'
घट ना जायेगी….................. ???

Wednesday, August 19, 2009

'निर्माण'

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सागर, सहरां, सूरज, परबत,
और तो और वक़्त भी.........

सृष्टि को जब भी देखा मैंने,
पाया यही,
कि 'निर्माण'
'जुड़ने' और 'जोड़-सकने'
के एक मात्र सिद्धांत पर,
आधारित है...


पर फिर
जाने कैसे इस दुनिया के लोगों ने,
दुनिया को टुकडों टुकडों में
काट-बाँट कर,
अपनी-अपनी अलग
दुनियाएँ बना लीं ????

Thursday, August 06, 2009

Mere Scribbling

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I say........ 'I exist not'
They say I do…
“We have proofs of it”,
they add.
To my fear,
‘Do they actually have you???’

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