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बहुत फैलीं हैं
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बहुत फैलीं हैं
तेरी यादों कि जड़ें
बरसात चाहे ज़हन के
जिस भी हिस्से में हो
पर जो ग़म हरा हुआ है
तेरे नाम का ही रहा है
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