सान्निध्य
Sunday, December 13, 2009
मेरा घर
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बहुत दिन हुए
ठीक से सोयी नहीं |
कोई नज़्म जो नहीं लिखी तूने...
घर के सिवा सुकूं
कहाँ मिले है?
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तेरी यादें
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जब भी चाहा
तेरी यादों को दफन करना
तुझ संग बीता
हर लम्हा मुझे
साँस लेता हुआ मिला
अब तुम ही कहो
ज़िन्दगी का गला
कैसे घोंटूं ?
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