मेरे बदन में
शिराएँ फैली हैं
सर से पाँव तक– हर ओर,
दूर तलक
कितना लंबा रास्ता है ये!
हांफ जाता होगा बेचारा मेरा लहू,
दौड़ते दौड़ते रोज़ाना
सोचती हूँ
एक शोर्ट-कट इख्तेयार कर दूं
और काट दूं कुछ शिराएँ अपनी
पर फिर रहने देती हूँ
के अभी रास्ता जाना पहचाना है
दौड़ना आसान होता होगा
और फिर अनजाने रास्तों पर
एक्सीडेंट का खतरा भी तो
बढ़ जाता है!
कहीं कुछ घट गया
तो खामखाँ मेरे सर
खुदकुशी का आरोप
मढ़ दिया जायेगा !
26th May, 08
1 comment:
a little confused ..still 'qatal'
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