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अब भी
जब हम कहीं टकरा जाते हैं
तुम पूछ ही लिया करते हो
“कैसे हो”
मैं भी
झट कह देती हूँ
“अच्छी”
जानती हूँ
के जब तुम्हें ये जानना होगा
तब तुम्हें
मुझसे पूछने की
आवश्यकता ना होगी
पर अच्छा है,
औपचारिकता की ये दीवार
बनी ही रहे!!
हकीकत देख कर तुम
मुंह घुमा लो
तो पीडा अधिक होगी
दुर्घटनाओं के बाद का दृश्य
अक्सर
भयावय ही होता है …
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3 comments:
Sachmuch aap jo likhti hain uska jabab nahi..
@ravi k rajbhar... dhanyawaad ravi ji. :)
i wish ki ye exact adhi hoti..
first two paragraphs ..
bas ...
vahan tak bahot sundar hai , aage momentum aur intensity ko dhakka lagta hai
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