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तेरी यादों की लहरें आयीं और लौट भी गयीं
पर ज़हन में अब कोई ख़याल उगता ही नहीं
सैलाबों के बाद ज़मीं बंजर भी हो जाती है
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बड़ी मशक्क़त से खड़ी करती हूँ रोज़ नए तर्कों की इमारतें
दिल पे समझदारी का शहर बसने का गुमां,भला लगता है
तेरी यादों की बस एक लहर भर, मुझे फिर से रेत कर जाती है
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तेरी यादों की लहरें आयीं और लौट भी गयीं
पर ज़हन में अब कोई ख़याल उगता ही नहीं
सैलाबों के बाद ज़मीं बंजर भी हो जाती है
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बड़ी मशक्क़त से खड़ी करती हूँ रोज़ नए तर्कों की इमारतें
दिल पे समझदारी का शहर बसने का गुमां,भला लगता है
तेरी यादों की बस एक लहर भर, मुझे फिर से रेत कर जाती है
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