---------------------------
अब्बा की ऊँगली पकड़
जब बाज़ार जाती
और कोई aeroplane
सर के ऊपर से
गुज़र जाया करता
तो हाथ फ़ौरन
अपनी पकड़ छुड़ा
उठ जाया करते,
आँखें उसके ओझल होने तक
पीछे दौड़ती रहती उसके ,
और मैं,
मैं अपनी पूरी ताकत लगा
जोर से चिल्लाती
"खुदा हाफिज़......................"
ऊँगली पकड़ कर चलना तो
कब का छूट गया,
और हवाई जहाज़ों को तकना भी...
पर खुदा हाफिज़ कहने के मौके
अब भी बहुत आते हैं
वक़्त के साथ
जान पहचान की पकड़
बढ़ी ही है,
घटी तो नहीं |
पर ऐसे मौकों पर
अब हाथ नहीं उठते
और ना ही जाते हुए क़दमों को
अगले मोड़ तक छोड़ने जाती हैं निगाहें
बस बमुश्किल
लभ हिला करते हैं
और वो भी कुछ यूँ
कि कोई दस्तूर अदा करते हों...
दिल तक तो कोई हरक़त की लहर
पहुँचती ही नहीं !
सच
वक़्त के साथ बहुत
बेअदब, बदतमीज़ हो गयी हूँ मैं
---------------------------
अब्बा की ऊँगली पकड़
जब बाज़ार जाती
और कोई aeroplane
सर के ऊपर से
गुज़र जाया करता
तो हाथ फ़ौरन
अपनी पकड़ छुड़ा
उठ जाया करते,
आँखें उसके ओझल होने तक
पीछे दौड़ती रहती उसके ,
और मैं,
मैं अपनी पूरी ताकत लगा
जोर से चिल्लाती
"खुदा हाफिज़......................"
ऊँगली पकड़ कर चलना तो
कब का छूट गया,
और हवाई जहाज़ों को तकना भी...
पर खुदा हाफिज़ कहने के मौके
अब भी बहुत आते हैं
वक़्त के साथ
जान पहचान की पकड़
बढ़ी ही है,
घटी तो नहीं |
पर ऐसे मौकों पर
अब हाथ नहीं उठते
और ना ही जाते हुए क़दमों को
अगले मोड़ तक छोड़ने जाती हैं निगाहें
बस बमुश्किल
लभ हिला करते हैं
और वो भी कुछ यूँ
कि कोई दस्तूर अदा करते हों...
दिल तक तो कोई हरक़त की लहर
पहुँचती ही नहीं !
सच
वक़्त के साथ बहुत
बेअदब, बदतमीज़ हो गयी हूँ मैं
---------------------------
9 comments:
भावुक रचना,सुंदर लिखा आपने,धन्यवाद
वक्त के साथ हम नही हम साथ वक्त खफा है,
वरना हम भी वो बीते पल दुहराना चाहते है,
वो तश्तरी,वो उंगली,वो बाज़ार वो बचपन के साथी,
बिखरे हसीन लम्हे हम फिर से पाना चाहते है.
वर्तिका जी मैं सबसे पहले वतो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की लो ब्लॉग फलो क्यों करते है केवल संख्या बढ़ाने के लिये या दिखाने के लिए की हाँ हम है जो आप की रचनायों को पढ़ते है पर सायद पढ़ते कभी ना हों मैंने देखा की आप के लग भाग २० फालोअर है पर कमेन्ट एक भी नहीं शर्म आती है इसी लिए मैं आप का ब्लॉग फालो नहीं कर रहा अब कविता पर आते है आप ने जिस भोले पण से भावनाओ को उकेरा है लाजबाब है बधाई
सादर
प्रवीण पथिक
www.praveenpathik.blogspot.com
9971969084
वर्तिका जी मैं सबसे पहले वतो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की लो ब्लॉग फलो क्यों करते है केवल संख्या बढ़ाने के लिये या दिखाने के लिए की हाँ हम है जो आप की रचनायों को पढ़ते है पर सायद पढ़ते कभी ना हों मैंने देखा की आप के लग भाग २० फालोअर है पर कमेन्ट एक भी नहीं शर्म आती है इसी लिए मैं आप का ब्लॉग फालो नहीं कर रहा अब कविता पर आते है आप ने जिस भोले पण से भावनाओ को उकेरा है लाजबाब है बधाई
सादर
प्रवीण पथिक
www.praveenpathik.blogspot.com
9971969084
acche bhav hain sundar bahut accha likha hai...............
vinod ji, praveen ji evam akshay ji...aap sabhi kaa hardik dhanywaad... :)
@praveen ji.... aap yahan aaye accha laga... jahan tak blog follow karne aur comments kaa sawaal hai, to sir, its alright if ppl dont comment... it is their choice....samay aur suvidha anusaar yahan aana aur padhnaa hi bahut mere liye... aapne tippni dene kaa samay nikaala, uske liye hum aabhari hain .... :) umeed hai aage bhi kabhi kabhi ghoomte phirte yahan aapse mulaqaat hoti rahegi....
s-aabhar
ek nye kavi ko padh kar achha laga
Touched by your creation.
Ab aap wahan pahuchne lage hain jahan hamari nazar ki had aati hai, nigah dhundhla jaati hai...........to bas yahi ki asie hi badhte rahiye.
Awesome.
Itne sundar shabd sanjoye hain aapne ki man vibhor hai.
Adbhut kavitaa....utkrisht samapan.
Dheron badhayee...anekon shubhkamnayein.
Post a Comment