Tuesday, June 16, 2009

मैं....... एक लोक गीत

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जानती हूँ
मेरा तुम्हारा साथ
क्षणिक है

सो इन कुछ क्षणों में,
ना तो यह मुमकिन है
कि तुम समझ सको
मायने मेरे सभी
और ना ही यह संभव,
कि मैं छोड़ पाऊँ
वो छाप
ज़हन पर तुम्हारे
जिसे वक़्त चाह कर भी
धुंधला ना सके|

पर हाँ,
सदियों बाद ही सही,
जब कभी झाडोगे
वक़्त की धूल
ज़हन से,
मेरे रंग....फिर बोल उठेंगे,

मेरी खुशबू से रौशन हो जायेंगी तुम्हारी सांसें

और मेरे बोल...
उन्हें तो तुम
खुद ही उठा
लबों से,
चूम लोगे !!

देखना,
उस वक़्त
वक़्त भी खड़ा-खड़ा
मुस्कराएगा बुद्ध की तरह
और मैं,
मैं अपने कद से बड़ी
एक मुस्कान खींच ला
चुपके से रख जाऊँगी,
तुम्हारे होठों पर!

मैं....... एक लोक गीत |
हमेशा साथ रहना
मेरी नियति नहीं!
पर मुझे कभी,
बिसरा ना सकोगे तुम.....
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13 comments:

Anonymous said...

पर हाँ,
सदियों बाद ही सही,
जब कभी झाडोगे
वक़्त की धूल ...
Poem is good & For me these lines are the best part...

!!अक्षय-मन!! said...

बेहतरीन रचना......

Puja Upadhyay said...

लोकगीत को बड़ी खूबसूरती से शब्द दिए हैं...अंतिम पंक्तियाँ मन मोह लेती हैं

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

मैं....... एक लोक गीत |
हमेशा साथ रहना
मेरी नियति नहीं!
पर मुझे कभी,
बिसरा ना सकोगे तुम.....
**************************************************
भाव पूर्ण अभिव्यक्ती,मैं एसे कह्ता:
"भूल जाने के बहाने आ न पाये,
मिलते रहने के ज़माने आ न पाये."

sanjay vyas said...

लोक गीत वाला रूपक भाव को नए आयाम पर ले जाता है.

वर्तिका said...

@nidhi ji...dhanyawaad nidhi ji...

@ akshay ji... thanks a lot...

@ puja ji... aapko yahan dekhkar sach mein bahut accha laga... :)

@ktheLeo...
"भूल जाने के बहाने आ न पाये,
मिलते रहने के ज़माने आ न पाये." aapka andaaz-e- bayaan khoob hai... :)

@sanjay...dhanyawaad :)

m.s. said...

beautiful

नवनीत नीरव said...

khoobsoorat rachana hai.......aur lokgeet ki panti to kamal ki hai.

gazalkbahane said...

पर हाँ,
सदियों बाद ही सही,
जब कभी झाडोगे
वक़्त की धूल ...
बहुत खूबसूरत
‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां

http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

M Verma said...

मैं....... एक लोक गीत |
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बिसरा ना सकोगे तुम.....
संगीत का लोकसंगीत हो जाना, फिर क्या भूलना, क्या बिसराना
बहुत सुन्दर रचना. शानदार रचना

satish kundan said...

वाह...कितनी सहजता से आपने किसी के होने की अहमियत को समझा दिया है...उम्दा रचना जिसे पढ़कर मन प्रशन हो गया..ऐसे ही लिखते रहिये..

सुशील छौक्कर said...

ये लोकगीत पसंद आया। शब्दों की मासूमियत से भरी एक सुन्दर रचना। कई लाईन मन को भाई।

Randhir Singh Suman said...

ati sundar