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मेरा अंतस अब खँडहर ही हो चला...
गाहे-बेगाहे जो टकरा जाओ कहीं
मैं घन्टों सुनती रहती हूँ तुम्हें |
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मेरा अंतस अब खँडहर ही हो चला...
गाहे-बेगाहे जो टकरा जाओ कहीं
मैं घन्टों सुनती रहती हूँ तुम्हें |
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6 comments:
अंतस के खंडहर मे आवाज गूंजती है --
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बहुत सुन्दर त्रिवेणी
good
:) wah wah wah...ye sab dil se seedhee nikle hue shabd hain..
aakhir tum ho hi kya...meri aatma se nikli ek anoogoonj ke siva.
कुछ पढ़ कर कभी दिल भर आया कभी आँख.......
इस बार इन पंक्तियों को निचोड़ कर देखा........कहानी मिली...........आँखें नम करने वाली.........
Kya baat hai....Vartika Ji aap triveniyan bhi likhti hain? behtreen triveni kahi hai... :)
--Gaurav
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