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झुग्गियां, परछाइयां है महलों की
उखाड़ फेखने से ख़त्म नहीं होंगी ।
न ही ख़त्म होंगी वो
महलों को गिरा देने से,
क्यूंकि हर महल, खुद किसी
दूसरे बड़े महल की परछाई है ।
सो 'गर चाहते हो
कि न रहे झुग्गियां बाकी
तो उठाओ वो सूरज,
जो अभी किसी 'halo' सा चमकता है,
और रख दो उसे
संसार के सर के ठीक ऊपर
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* halo = तेजोमंडल, प्रकाश-चक्र
5 comments:
क्यूंकि हर महल, खुद किसी
दूसरे बड़े महल की परछाई है ekdam theek......
बहुत हगरी पंक्तियाँ, सूरज जितना ऊपर जायेगा, उतनी परछाईयाँ सिकुड़ जायेंगी।
@ mridula pradhan, manav mehta, praveen pandey..... bahut bahut shukriya aap sabhi kaa :)
पुरे 1 साल 8 महीने 3 हफ़्ते और 4 दिन (कुल 636 दिन) के बाद पोस्ट किया है।
गहन अनुभूति की रचना
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