दर्द का संपूर्ण कोश उडेल डाला
शब्दों का ढेर भी लगा दिया
दिल का कटोरा खुरच-खुरच कर
धड़कन को ही पन्नों पे सजा दिया
चलो,
अब इन्हें समेट लूं,
और दे आऊं
ठण्ड से कांपते
किसी बेघर बूढे को
बेचारा
इन्हें जलाकर
थोडा जीवन ईधन ही पा जाए
तो,
मेरी कविता
मुकम्मल हो जाए
दिल का भार तो अब भी
धरा का धरा रख्खा है….!!
6 comments:
I dont know how to react to this latest development...I must say you amaze me :O
bahut khoob...........
tumhari har rachana samvedana se poorn hoti hai .tbhi to wo mukammal hai .
love u
Bohot Khoob!!!
amazing! dard se yun jeevan indhan paane ki soch kamaal ki hai. aise likhna to apneaap me mukammal hota hai.hardik badhai.
@sajal...:)
@jyotsna di...di,koi bhi rachnaa sirf samvednaon se paripoorna hone se mukammal nahin hoti... balki pathakon k un samvednaon tak pahunchne se hoti hai...meri rachnao ko mukammal banane k liye aapka hardik dhanyawaad...
@vinod ji and puja ji...aap dono kaa bhi dhanyawaad...ummeed hai bhavishya mein bhi aapke comments milte rahenge.........
आपकी रचनायें अंतर्मन को उत्प्रेरकता देती हुई एक सकारात्मक दिशा की ओर उन्मत करती हैं, जब कभी मैं आपकी रचनाओं को आत्मसात कर रहा होता हूँ तब अनायास आपका व्यक्तित्व विचारों में तैरने लगता है, संवेदना और आवश्यकता की परिधि में झूलती परिस्थति की वेदना का तार...., अपने सामर्थ्य को कैसे और कितना मुखरित करेगी इस बात की दक्षता आपकी हर रचना प्रमाणित करती है|
हम जैसे होते हैं ठीक वैसा ही लिखते भी हैं .....और इसके अलावा कुछ लिख भी नहीं सकते....और न कभी लिख पाएंगें..!
यही कलमकार की सही परिभाषा है....जिससे आप चित्रित हैं|
शुभकामनाओं समेत!
आपका शुभेक्षु!
अनुराग रंजन सिंह "यायावर"
http://yaayaawar.wordpress.com
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