Friday, February 27, 2009
Sunday, February 22, 2009
Monday, February 09, 2009
मेरा पता
लोग यूं ही कहा करते हैं
मुझे अपना पता तक याद नहीं!
तेरी हर नज़्म तो मुंह ज़बानी याद है मुझे!!
मुझे अपना पता तक याद नहीं!
तेरी हर नज़्म तो मुंह ज़बानी याद है मुझे!!
Saturday, February 07, 2009
आरज़ू

हसरतें,
सपने,
कल्पनाएँ
और प्रेम...
सब समेट कर
हर रोज़
एक नज़्म लिखती हूँ
और फिर
उस नज़्म की नांव बना,
बहा देती हूँ,
आँखों के पानी में...
मेरे यहाँ
समंदर जो नहीं होता!
पर सुना है सारा पानी जाके
समंदर में ही
मिला करता है...|
सो यूं ही सही,
पर हो सकता है
मैं किसी रोज़ तुमसे
मिल सकूं!
सच,
तुमसे मिलने की
आरज़ू बहुत है...!!
Friday, February 06, 2009
खुदकुशी

मेरे बदन में
शिराएँ फैली हैं
सर से पाँव तक– हर ओर,
दूर तलक
कितना लंबा रास्ता है ये!
हांफ जाता होगा बेचारा मेरा लहू,
दौड़ते दौड़ते रोज़ाना
सोचती हूँ
एक शोर्ट-कट इख्तेयार कर दूं
और काट दूं कुछ शिराएँ अपनी
पर फिर रहने देती हूँ
के अभी रास्ता जाना पहचाना है
दौड़ना आसान होता होगा
और फिर अनजाने रास्तों पर
एक्सीडेंट का खतरा भी तो
बढ़ जाता है!
कहीं कुछ घट गया
तो खामखाँ मेरे सर
खुदकुशी का आरोप
मढ़ दिया जायेगा !
26th May, 08
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