Saturday, April 10, 2010

इल्ज़ाम

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मेरी कविताओं की दुनिया
तुम्हारे इर्द गिर्द फैली हुई थी….
हर शब्द, हर भाव
तुम्हारे ही चारो ओर घूमता था
तुम्हारे ही गुरुत्वाकर्षण से
उन्हें निश्चितता मिलती थी,
धुरी की ….


पर जबसे तुम छोड़ गए हो उन्हें
यह यहाँ बेतरतीब से बिखरे पड़े हैं........
गुरुत्व को लम्बी दूरियां तय करना
कब आया है !


यूँ तो तुम्हारी ही तरह
मैंने भी अपनी अलग दुनिया बसा ली है…
एक ऐसी दुनिया
जहां शब्दों की ज़रुरत ही नहीं.
संवाद एहसासों की शक्लों के ज़रिये होता है
नज्में जहाँ कलम से नहीं
ज़िन्दगी से फूटा करती हैं
पढ़ी सुनी लिखी नहीं,
जी जाती हैं
सच यह हसीं सी दुनिया
अपने आप में संपूर्ण है …
पर फिर भी मुझे
उन् शब्दों की बेतरतीबी खलती है
हाँ दुनिया नहीं, शब्द नहीं,
तुम भी नहीं,
बस उन् शब्दों की बेतरतीबी !
के अब जब वे नज्मों में
बहा नहीं करते,
तो बस टकराया करते हैं
एक दूसरे से,
लड़ा करते हैं
कभी आपस में, कभी खुद से ही ………….
चिल्लाया करते हैं,
बेवजह….
(शायद तुम्हें ही पुकारते हों,
बेवजह तो तब भी होगा)


नहीं जानती
यह शोर तुम्हारी दुनिया तक
पहुंचता है या नहीं
पर मेरी दुनिया तक आ ही जाता है
और मैं चाह कर भी
इसे अनसुना नहीं कर पाती
सिर्फ इसलिए ….इसीलिए ही लौटती हूँ
वापस उस बेतरतीब दुनिया में
दौड़ती हूँ हर एक शब्द के पीछे
जिनकी रफ़्तार
मेरे ख्यालों के रफ़्तार से भी तेज़ है
और आखिरकार
जब बहुत मेहनत के बाद
वह शब्द हाथ आ जाता है
तो तुरंत पिन कर देती हूँ उसे वहीं
तुम्हारी  ही किसी याद के सहारे |
उतना वेग और किसी तरह तो
संभाला जा नहीं सकता…………


यह सिलसिला जारी रहता है
मुसलसल कई दिनों तक
मेरी सांसें टूटने लगती हैं
और जब काफी सारे शब्द
तरतीब पा जाते हैं
तो लोग समझ बैठते हैं
मैंने तुम्हें याद कर
फिर एक नज़्म कह डाली….


उफ़... यह इल्ज़ाम कितना बड़ा है!
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19 comments:

Ravi Rajbhar said...

Wah...
waise to dard par tali nahi bajai jati..
par rachna ke samman me bajane par koi harz nahi..
hamesa hi aapko padhane ke baad ham soch me pad jaten hain ki aap shabdo ka chayan kaha se karti hain..
Badhai...rachna bahut ki sunder hai.

Avinash Chandra said...

यह सिलसिला जारी रहता है

मुसलसल कई दिनों तक

मेरी सांसें टूटने लगती हैं

और जब काफी सारे शब्द

तरतीब पा जाते हैं

तो लोग समझ बैठते हैं

मैंने तुम्हें याद कर

फिर एक नज़्म कह डाली….








उफ़... यह इल्ज़ाम कितना बड़ा है!


Goya aise iljaam sabke bas kahaan hote hain...aapne sahe ye aapki kaabiliyat hai, ham laga paaye ye hamari khushnaseebi...har shabd baha...wakai, koi lada nahi....andar tak bahta aaya....guru ka gurutva hai...ye asteroid belt ki tarah ghoomtaa bhi hai...doori bhi tay kartaa hai.......sath chhodta bhi nahi...

khushnaseeb hain ham sab jo aap is kaal me hain :)

Standing ovation to this sheer talent..
keep penning down....ye iljaamon ke badges bahut fabte hain aap par :)

स्वप्निल तिवारी said...

:) :) :)

अरुणेश मिश्र said...

आपकी रचना गूँगे का गुड़ एवं करील कुञ्ञों का परिपाक कराती है ।

शुद्ध शब्द सानिध्य ।

nidhi said...

Bahut sundar rachna :-)

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

As usual a gem from you.. :) Buzzed this post..

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

अलीम आज़मी said...

vertika ji kya khoob likha ....bahut umda ...

M VERMA said...

और जब काफी सारे शब्द

तरतीब पा जाते हैं

तो लोग समझ बैठते हैं

मैंने तुम्हें याद कर

फिर एक नज़्म कह डाली….



उफ़... यह इल्ज़ाम कितना बड़ा है!

नज़्म किसी की याद में कहे गये हो या नहीं पर आपके शब्द जब आकार पाते हैं अनायास बोलते हैं और हर बार पढने पर नया अर्थ दे जाते है. आखिर इसे इल्जाम कौन कह सकता है.
अद्भुत रचना
बेहतरीन

Anonymous said...

Antim 5 panktiyan poori kavita par bhaari pad gayi vartika ji.....Aise hi saala ye ghum bhi jo ek kone me chhupa baitha hai kabhi kabhi saari khushiyon pe bhaari pad jaata hai...kaanta pata nahi chhubha tha kab...nikalta hi nahi.........

Anonymous said...

kya kahoon ....
itni achhi abhiwyakti bhawnaon ki....
congrats on such a beautiful poem....
waiting for your next poems curiously..
regards..
shekhar
http://i555.blogspot.com/

कुश said...

फुल मार्क्स..!

नज़्म को नज़्म बनने के लिए जिन मसालों की जरुरत है वो सब इसमें है.. गुरुत्वाकर्षण तो कमाल था..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

और जब काफी सारे शब्द

तरतीब पा जाते हैं

तो लोग समझ बैठते हैं

मैंने तुम्हें याद कर

फिर एक नज़्म कह डाली….

ओह नज़्म का यूँ जन्म लेना....बहुत खूबसूरती से लिखा है वर्तिका तुमने.....

मैंने तुम्हारा ब्लॉग पा ही लिया....कभी तुमने बताया नहीं अपने ब्लॉग के बारे में :(:(

Apanatva said...

bahut accha laga rachanae pad ker.......
bahut accha likhatee hai aap........

nilesh mathur said...

bahut hi sundar rachna, aap ho kahan itane din se !

दिलीप said...

waah bahut sundar...saara dard ubhaar ke rakh diya....man bhar aaya...

Anonymous said...

प्रशंसनीय प्रस्तुति - शुभ आशीष

puja kislay said...
This comment has been removed by the author.
Puja Upadhyay said...

धारा की तरह बहना और फिर प्रपात की तरह गिरना, आखिरी पंक्ति पर...बलिहारी जाएँ तुम्हारी इस कविता पर