Friday, June 04, 2010

अधूरा सा कुछ ............पुराना सा कुछ .............उम्र सा कुछ.... अम्ल सा कुछ ......... खामोशी सा कुछ.......लफ्ज़ सा कुछ ........ मुझ सा कुछ .........और शायद .......तुम सा कुछ ............

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कहीं पढ़ा था
"लफ्जों के दांत नहीं होते,
पर काटते हैं,
और काट लें
तो फिर उनके ज़ख्म
उम्र भर नहीं भरते!"

पर तुम्हारी खामोशी...
वो तो काटती भी नहीं,
बस घुल जाती है,
रूह में,
और घुलते घुलते
घो़लती रहती है धीरे धीरे,
मुझे भी, अपने भीतर,
किसी अम्ल के मानिंद!
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28 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

बढिया रचना बधाई।

M VERMA said...

पर तुम्हारी खामोशी...
वो तो काटती भी नहीं,
बस घुल जाती है,

और फिर घुली हुई खामोशी और उसका शोर उफ्फ!
खामोशी की आवाज कितनी गहरी पैबस्त होती है
लाजवाब रचना

Randhir Singh Suman said...

nice

आचार्य उदय said...

आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !

आचार्य जी

संजय भास्‍कर said...

आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर तुम्हारी खामोशी...
वो तो काटती भी नहीं,
बस घुल जाती है,
रूह में,

बहुत गहरे तक गयी ये बात....अच्छी अभिव्यक्ति

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

शीर्षक खुद मे एक कविता है... इतने सारे अलग अलग तरीके के ’कुछ’ के बारे मे बताती हुयी..

कविता हर बार की तरह खास और जैसे खत्म हुयी.. मस्तिष्क मे एक शब्द चमक गया - 'Amalgamated'

बचपन मे जब इस शब्द को याद किया था तो जेहन मे एक नोट सा था कि इस शब्द मे ’अम्ल’ आता है और अम्ल मे सब कुछ मिलता जाता है..

विनोद कुमार पांडेय said...

एक सुंदर अभिव्यक्ति...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद स्वीकारें

Avinash Chandra said...

do ghante tak us kuchh, jo shirshak me dikh raha tha, use dhoondhta raha....bahut kuchh mila...nazm ka naam bhi nazm, ye sirf aapki kalam se nikalta hai...sach me

कहीं पढ़ा था
"लफ्जों के दांत नहीं होते,
पर काटते हैं,
और काट लें
तो फिर उनके ज़ख्म
उम्र भर नहीं भरते!"

maine nahi suna tha ab ke pahle, par kaatte to hain lafz, mahsoos kiya hai..fully agreed.

पर तुम्हारी खामोशी...
वो तो काटती भी नहीं,
बस घुल जाती है,
रूह में,

uff...kaise dekh paati hain, mahsoos kar paati hain itna?
aapke rom ke spandan ka taar hi kuchh alhadaa saa hai.
achchha...bahut achchha sa hai. :)

और घुलते घुलते
घो़लती रहती है धीरे धीरे,
मुझे भी, अपने भीतर,
किसी अम्ल के मानिंद!

wordless......... aap jab maanind shabd ka istemaal karti hain, to maanind bhi suraj ki maanind chamak jata hai, wakai :)

aur haan, khamoshi se batiyaane ki vidha me aap poorn paarangat hain, isme koi do raay nahi...thanks for the june gift Vartika :)

दिलीप said...

waah ek adbhut soch pehli pankti ne hi dil jeet liya...suna hai shabdo ke daant nahi hote...

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्दों की चुभन और मौन की घुलन, बहुत ही सरलता से बता गयीं आप ।

sonal said...

मज़ा आ गया वर्तिका ,कुछ अनूठी अभिव्यक्ति पढने को मिले नए बिम्ब मिले ...

स्वप्निल तिवारी said...

:)

नीरज गोस्वामी said...

तो फिर उनके ज़ख्म
उम्र भर नहीं भरते!

आपकी रचना की इन बेहतरीन पंक्तियों को पढ़ कर मुझे अपना एक पुराना शेर याद आ गया...

ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ


नीरज

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Kya baat hai!?
Dekhan mein chhotan lage, ghav kare gambheer!
Main shabdon ki nahin aapki baat kar raha hoon!
Ha ha ha....
Behad umda!

एक बेहद साधारण पाठक said...

क्या बात है , अद्भुद रचना है . मन कहीं खो सी गयी पढ़ते हुए .. खयालों के भंवर में शायद

nilesh mathur said...

बेहतरीन!

दिगम्बर नासवा said...

उफ्फ ... क्या बात लिखी है ... लफ्ज़ काटते हैं ... और खामोशी ... वो तो बस घुलती है ... किसी अम्ल की मानिंद ..... लाजवाब ...

S R Bharti said...

वर्तिका जी ,
आपके द्वारा प्रश्तुत रचनायें वृछ की अक्र्ति पर पड़ने के कारण पूर्णरूप से पाठ्य नहीं हो पायीं
व्रछ का चित्र हटायें शेष के लिए बहुत ही भावपूर्ण हार्दिक बधाई

अरुणेश मिश्र said...

भावपूर्ण रचना ।

रावेंद्रकुमार रवि said...

अपने तरह की एक अनूठी अभिव्यक्ति!

सम्वेदना के स्वर said...

पहली बार आना हुआ..स्वप्निल ने हमारी एक पोस्ट पर लिखी नज़्म पर आपका रेफरेंस दिया..दरसल खयाल टकरा गए थे हमारे http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/06/blog-post_12.html

फिर दिमाग़ से बात उतर गई... आज अचानक याद आया तो पढकर देखा... वाक़ई आपकी और मेरी सोच टकरा गई… आपने बदल जाने की बात कही थी, मैंने काटकर ले जाने की… आपकी कविताएँ दिल के क़रीब लगती हैं... नए लफ्ज़ और नए मानी देखने को मिलते हैं... शुक्रिया!!!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Lafzo ke daant dikh gaye..........:D
bahut sundar abhivyakti.........pathniya!!

follow karna pada
ab baraba rubaru hota rahunga...
nimantran: mere blog pe aane ka:P

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

घूमते घूमते इधर आना हुआ.. देखा तो जैसे एकदम डेन्ट पेन्ट कर दिया है.. डाट्स भी लगा दी है ढेर सारी.. :)

पन्च लाईन सबसे जबरदस्त लगी मुझे... जब इस कविता को बज़ पर शेयर किया था तो एक सुझाव आया था कि अम्ल की जगह तेजाब ज्यादा फ़िट होगा.. मुझे भी लगा कि शायद ठीक ही कहा था उन लोगो ने.. मुझे लगा शायद यहा आकर भी कहा होगा लेकिन अभी देखा तो नही है :)

देखना.. वैसे अम्ल के बारे मे मै अपनी प्रतिक्रिया तो पहले ही लिख चुका हू..

Apanatva said...

bahut accha likhtee ho...........
bahut sunder abhivykti.

वर्तिका said...

aap sabhi kaa hardik dhanyawaad....

@mamma... aapko yahan dekh kar bahut accha lagaa mamma...

@pankaj.... hehehe....waah kya defination de hai amalgamated ki....mere paas itnaa dimaag kyun nahin thaa.... infact aaj bhi nahin hai...hehee..:) aap kaa sujhaav par sochaa humne ...par humein ab bhi yahi lagaa ki maanind shabd ke saath amal hi jaata ahi ...tezaab nahin... anyways thank u sooo mch ki aapne yaad rakhaa huemin bataana.... :)

@ avinash... are kjahan kuch thaa hi nahin vahan dhoondhenge to do ghante kyaa kyaa zindagi lag jaayegi....vaise aapko jo milaa mere ko bhi bataa dijiye...:p acha ab sahi mein dher saaara thnaks.... aapke comments padhnaa aapki rachnao jitnaa hi accha lagtaa hai..phir chahe vo kisi ki bhi rachnaa par hon... :)

@ dileep ji... "shabdon ke daant nahin hote" yeh gulzaar ji ki pankti hai sir.... mujhe shaayd pehle hi mention kar denaa chahiye tha... par lagaa ki sabne padhaa hai hogaa... so soryy...

@ neeraj ji.... :) kyaa khoobsoorat sher hua hai.... aapki rachnaein padhnaa humeisha hi accha lagtaa hai.. aapkaa blog pehle bhi padh chuke hain...

@ samvedhnaa ke swar... sir... aapkaa aana accha lagaa... :) aapki voh post maine bhi padhi... aksar hoptaa hai ki khayaal takraa jaate hain.... :)

@ mukhesh ji.... heheh... :D

nilesh mathur said...

बेहतरीन रचना!!

Unknown said...
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