Wednesday, June 24, 2009

तेरी यादों की लहरें

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तेरी यादों की लहरें आयीं और लौट भी गयीं
पर ज़हन में अब कोई ख़याल उगता ही नहीं

सैलाबों के बाद ज़मीं बंजर भी हो जाती है

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बड़ी मशक्क़त से खड़ी करती हूँ रोज़ नए तर्कों की इमारतें
दिल पे समझदारी का शहर बसने का गुमां,भला लगता है

तेरी यादों की बस एक लहर भर, मुझे फिर से रेत कर जाती है
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15 comments:

M VERMA said...

बहुत खूब कहा है :
सैलाबों के बाद ज़मीं बंजर भी हो जाती है

थोडे़ में बहुत ज्यादा

डॉ आशुतोष शुक्ल Dr Ashutosh Shukla said...

सपने बुनने और उनके सच होने में कितना फर्क होता है ? सुन्दर भाव..

satish kundan said...

तेरी यादों की बस एक लहर भर, मुझे फिर से रेत कर जाती है....बहुत भावपूर्ण रचना जो सहज ही दिल को छूती है...बधाई!!!!!!! मैंने भी एक नई पोस्ट डाली है आपका स्वागत है...

अंतस said...

behtareen...........bas itna hi kahoonga

अंतस said...

haan ek baat aur kuch khayaal udhaar de sako to post kar dena...........:)

प्रकाश गोविंद said...

बहुत ही सुन्दर भाव है..और उतनी ही गहराई भी

बेहद खूबसूरत रचना

आज की आवाज

!!अक्षय-मन!! said...

bahut khub....

cartoonist anurag said...

bahut hi sunder rachna likhi hai aapne badhai...

ajay saxena said...

gahre artho ke ssath likha hai ...aaj kafi sarri kavitai padhi aapki ...aise hi likhte rahiye

Sajal Ehsaas said...

1st one is good...second one is plain

छत्तीसगढ़ पोस्ट said...

अच्छी रचनाएँ हैं....बिना रुके लिखते रहिये..लिखते रहिये..लगातार..मेरी शुभकामनाएं...

anusha said...

loved both ur trivenis lady... :)

cartoonist anurag said...

aayeeye dekhiye court k faisle par ek cartoon....
is samaz ka kya hoga.....

vartika ji....
apne moolywan vicharo se mujhe avgat karayen.....

m.s. said...

beautiful

Lams said...

बड़ी मशक्क़त से खड़ी करती हूँ रोज़ नए तर्कों की इमारतें
दिल पे समझदारी का शहर बसने का गुमां,भला लगता है

तेरी यादों की बस एक लहर भर, मुझे फिर से रेत कर जाती है
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Mujhe yeh triveni bahut achhi lagi bahut hi achhi!!