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तुम थे
तब सोचा करती थी
कि चले जाओगे
तब सोचेंगे
कि क्या खोया
और क्या पाया
अब
जब तुम नहीं हो
जाने कबसे
ज़िन्दगी का बही खाता
लिए बैठी हूँ...
और हिसाब का गणित
याद ही नहीं आता......
कहीं तुम जाते जाते
मेरी ज़िन्दगी को
शून्य से भाग तो नहीं दे गए...???
11 comments:
ज़िन्दगी गणित नही है, कला है...न जाने लोग क्यू ज़िन्दगी हिसाब किताब मे खराब करते है...
अच्छा है जो याद नही आ रहा :) आप काफ़ी अच्छा लिखती है..आप ’कविता’ कम्म्युनिटी वाली वर्तिका जी है न??
:) har kalaa kaa apnaa ganit hota hai, aur har ganit ki apni kalaa....
besides zindagi kharaab ki hi nahin jaa sakti... all u do is u spnd life...u never waste it...u just cant....
aapki tipni dekhkar behad khushi hui... thnks a ton... :) aur haan hum kavita community waali vartika hi hain... :)
अत्यंत सारगर्भित रचना
सहेज के रखने वाली कविता
बहुत सुन्दर
आभार
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क्रियेटिव मंच
कहीं तुम जाते जाते
मेरी ज़िन्दगी को
शून्य से भाग तो नहीं दे गए...???
वाह क्या बात है. चलो अच्छा है कि शून्य से भाग दिया और आप अनंत हो गयी.
नए अन्दाज की रचना बहुत अच्छी लगी.
सुन्दर कविता.....
अच्छा पंच मारा... बेसुध कर दिया जाते जाते
Vartika Ji,
Behtreen se kam main kya kahun...
.
कहीं तुम जाते जाते
मेरी ज़िन्दगी को
शून्य से भाग तो नहीं दे गए..
.
Nazm ke aakhir me yeh zabardast 'hit'! Hats off to you!
--Gaurav
haan, sahi kaha..
bahut shaandar nazm kahi hai, behtareen..
kavita aur ganit ka khoobsoorat combination :)
kahin ghoom phir kar aapke blog pe aaya to thoda thithka aur is kavita ki aakhiri panktiyaan padhin .. socha ki baat ki gahraayi to samander se prtiyogita kar sakati hai ..
ek viraam sa la diya is ganit ne ...
marmsparshi bhaav ..kam shabdon mein bhavo ko khoob piroya hai daad hazir hai
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