Tuesday, April 12, 2011

जड़ें

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बहुत फैलीं हैं 
तेरी यादों कि  जड़ें


बरसात चाहे ज़हन के
जिस भी हिस्से में हो
पर जो ग़म हरा हुआ है 
तेरे नाम का ही रहा है 

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22 comments:

अनामिका की सदायें ...... said...

gahre me doob kar likhi abhivyakti. asardaar !

Apanatva said...

bahut bhavpoorn abhivykti...

mridula pradhan said...

wah......kya baat hai....

प्रवीण पाण्डेय said...

जड़ में यादें हैं तो हर पत्ती वही कहेगी।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर जो ग़म हरा हुआ है
तेरे नाम का ही रहा है

बहुत खूब ...

अरुण अवध said...

बहुत खूबसूरत .........
सब कुछ तो कह गयी यह छोटी सी नज़्म !
बधाई आपको !

Rakesh Kumar said...

यह दिल भी अजीब चीज है, यादें कभी हर्षातीं हैं तो कभी रुलाती भी हैं.
नाम लेते ही सब उभर आता है.अच्छी यादों के साथ जीवन हंसी खुशी
गुजरता है.आपने एक अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका हार्दिक स्वागत है.हो सकता है कुछ अच्छी यादें उभर आयें वहां जा कर .

Ravi Shankar said...

बेहद उम्दा नज़्म ! बधाई !

Avinash Chandra said...

मन तो है कुछ और कहूँ, लेकिन शब्द घूम के भी कहेंगे वही:
बहुत दिन बाद सही, आपको पढना अच्छा लगा। :)

अन्दर से निकले, तुले हुए शब्द, अन्दर तक आते हैं।
छोटी सी नज़्म में उदासी छाई है, जो मजबूर करती है कि कहा जाए... वाह। :)

और फिर से वही पुराना राग: आपको अधिक लिखना चाहिए :)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्तिका बिटिया!
होता है ऐसा भी कभी,
ज़ख्मों की टीस बारिश लाती है
और वो बारिश हरे कर जाती है कई ज़ख्म!!
.
नज़्म बेहतरीन है,पर उदासी कतई नहीं!!
- सलिल अंकल
(सर और पैर एक साथ नहीं जाते,है न!!!)

crazy devil said...

kya kahun.... :P

Parul kanani said...

ultimate vartika...ultimate!!

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सुन्दर .

Patali-The-Village said...

बहुत खूबसूरत|धन्यवाद|

प्रिया said...

absolutely! kisi ke hisse ke gam, kisi ke hisse ki tanhaai, zindgi ek si hokar bhi mukhtsar hoti hai

Ravi Rajbhar said...

Bahut khoob di.

der se aane ke liye majrat chahunga.

di me aapko FB par rqst kar raha tha nahi leya.
aap se ho to mujhe bhej dijiye.

Anonymous said...

Beautiful and speechless............something very very close to heart...

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प..

Rangnath Singh said...

भाव पसंद आया..

vijay kumar sappatti said...

क्या कहे ,, आपके शब्द मन के भीतर उतर कर रुक गए है .. और ना जाने क्या कह रहे है ,..कोई पराई सी अपनी सी भाषा ..

आपकी लेखनी को सलाम ..

आभार
विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

अंतस said...

सूखी यादों की एक डाली है,
मुमकिन होता तो उस हरे हिस्से में पिरो देता....