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बहुत फैलीं हैं
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बहुत फैलीं हैं
तेरी यादों कि जड़ें
बरसात चाहे ज़हन के
जिस भी हिस्से में हो
पर जो ग़म हरा हुआ है
तेरे नाम का ही रहा है
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22 comments:
gahre me doob kar likhi abhivyakti. asardaar !
bahut bhavpoorn abhivykti...
wah......kya baat hai....
जड़ में यादें हैं तो हर पत्ती वही कहेगी।
बेहतरीन!
पर जो ग़म हरा हुआ है
तेरे नाम का ही रहा है
बहुत खूब ...
बहुत खूबसूरत .........
सब कुछ तो कह गयी यह छोटी सी नज़्म !
बधाई आपको !
यह दिल भी अजीब चीज है, यादें कभी हर्षातीं हैं तो कभी रुलाती भी हैं.
नाम लेते ही सब उभर आता है.अच्छी यादों के साथ जीवन हंसी खुशी
गुजरता है.आपने एक अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है.
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका हार्दिक स्वागत है.हो सकता है कुछ अच्छी यादें उभर आयें वहां जा कर .
बेहद उम्दा नज़्म ! बधाई !
मन तो है कुछ और कहूँ, लेकिन शब्द घूम के भी कहेंगे वही:
बहुत दिन बाद सही, आपको पढना अच्छा लगा। :)
अन्दर से निकले, तुले हुए शब्द, अन्दर तक आते हैं।
छोटी सी नज़्म में उदासी छाई है, जो मजबूर करती है कि कहा जाए... वाह। :)
और फिर से वही पुराना राग: आपको अधिक लिखना चाहिए :)
वर्तिका बिटिया!
होता है ऐसा भी कभी,
ज़ख्मों की टीस बारिश लाती है
और वो बारिश हरे कर जाती है कई ज़ख्म!!
.
नज़्म बेहतरीन है,पर उदासी कतई नहीं!!
- सलिल अंकल
(सर और पैर एक साथ नहीं जाते,है न!!!)
kya kahun.... :P
ultimate vartika...ultimate!!
बहुत सुन्दर .
बहुत खूबसूरत|धन्यवाद|
absolutely! kisi ke hisse ke gam, kisi ke hisse ki tanhaai, zindgi ek si hokar bhi mukhtsar hoti hai
Bahut khoob di.
der se aane ke liye majrat chahunga.
di me aapko FB par rqst kar raha tha nahi leya.
aap se ho to mujhe bhej dijiye.
Beautiful and speechless............something very very close to heart...
दिलचस्प..
भाव पसंद आया..
क्या कहे ,, आपके शब्द मन के भीतर उतर कर रुक गए है .. और ना जाने क्या कह रहे है ,..कोई पराई सी अपनी सी भाषा ..
आपकी लेखनी को सलाम ..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सूखी यादों की एक डाली है,
मुमकिन होता तो उस हरे हिस्से में पिरो देता....
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